यक्ष उवाच
इन्द्रियार्थाननुभवन्बुद्धिमांल्लोकपूजितः।
सम्मतः सर्वभूतानमुच्छ्वसन् को जीवति।।७.१।।
विषयों का उपभोग करने वाला बुद्धिमान कौन होता है ?
लोक द्वारा कौन है , जो पूजा करता है ?
संसार के सभी प्राणियों का प्रिय कौन होता है ?
श्र्वास न रुकने पर भी मृत समान कौन होता है ?
युधिष्ठिर उवाच
देवतातिथिभृत्यानां पितृणामात्मनश्र्च यः।
न निर्वपति पञ्चानामुच्छ्वसन्न स जीवति।।७.२।।
ईश्र्वर , घर आये मेहमान तथा सेवक , इन लोगों को तृप्त करने के उपरांत जो विषयों का उपभोग करता है , वही बुद्धिमान कहा जाता है।
जो पितरों को संतुष्ट करता है , लोकों द्वारा वही पूजित होता है अर्थात् उसी का आदर होता है।
जो संसार में समस्त प्राणियों को अपने सदृश देखता है , वही सम्पूर्ण लोगों का प्रिय होता है।
जो मनुष्य , ईश्र्वर , अतिथिगण , भृत्य , पितर , तथा आत्मा - इन पाँचों को संतुष्ट नहीं कर पाता , वह जीवित रहने पर भी मृतक के सदृश होता है।
इन्द्रियार्थाननुभवन्बुद्धिमांल्लोकपूजितः।
सम्मतः सर्वभूतानमुच्छ्वसन् को जीवति।।७.१।।
विषयों का उपभोग करने वाला बुद्धिमान कौन होता है ?
लोक द्वारा कौन है , जो पूजा करता है ?
संसार के सभी प्राणियों का प्रिय कौन होता है ?
श्र्वास न रुकने पर भी मृत समान कौन होता है ?
युधिष्ठिर उवाच
देवतातिथिभृत्यानां पितृणामात्मनश्र्च यः।
न निर्वपति पञ्चानामुच्छ्वसन्न स जीवति।।७.२।।
ईश्र्वर , घर आये मेहमान तथा सेवक , इन लोगों को तृप्त करने के उपरांत जो विषयों का उपभोग करता है , वही बुद्धिमान कहा जाता है।
जो पितरों को संतुष्ट करता है , लोकों द्वारा वही पूजित होता है अर्थात् उसी का आदर होता है।
जो संसार में समस्त प्राणियों को अपने सदृश देखता है , वही सम्पूर्ण लोगों का प्रिय होता है।
जो मनुष्य , ईश्र्वर , अतिथिगण , भृत्य , पितर , तथा आत्मा - इन पाँचों को संतुष्ट नहीं कर पाता , वह जीवित रहने पर भी मृतक के सदृश होता है।
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