रविवार, 20 मार्च 2016

२.२ ब्राह्मण

यक्ष उवाच
केनस्विच्छ्रोत्रियो भवति केनस्विद्विन्दते महत्।
केनस्विद्विद्वतीयवान्भवति राजन्केनचबुद्धिमान् ।।२.१।।

क्या करने से ब्राह्मण श्रोत्रिय कहलाता है?
यह ब्रह्म को किस तरह प्राप्त होता है ?
वह वृत्ति में अन्य लोगों  सदृश किस प्रकार होता है ?
हे राजन् ! मनुष्य बुद्धिमान किस तरह होता है ?

युधिष्ठिर उवाच
श्रुतेन श्रोत्रियो भवति तपसा विन्दते महत्।
वृत्या द्वितीयवान्भवति बुद्धिमान्वृद्धसेवया ।।२.२।।

वेद का अध्ययन करने से ब्राह्म्ण श्रोत्रिय कहा जाता है।
तप करने से ब्रह्म अर्थात्  परम परमात्मा को प्राप्त होता है।
धैर्य धारण करके दूसरों के सदृश होता है।
वृद्धों की सेवा करने से मनुष्य बुद्धिमान होता है।

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