भूयांसं लभते क्लेशं या गौर्भवति दुर्दुहा।
अथ या सुदुहा राजन्नैव तां वितुदन्त्यपि।।४.११.१।।
जो गाय कठिनाई से दुहने देती है अर्थात् जिससे दूध निकालना कठिन होता है , वह बहुत कष्ट पाती है। उसे दुहने के दूसरे रास्ते अपनाये जाते हैं। लेकिन जो आसानी से दूध देती है , उसे कोई भी कष्ट नहीं पहुँचाता है।
यदतप्तं प्रणमति न तत्सन्तापयन्त्यपि।
यच्च स्वयं नतं दारु न तत्सन्नमयन्त्यपि ।।४.११.२।।
जो धातु बिना आग में तपाये ही मुड़ जाती है , उसे कोई भी नहीं तपाता है। जो लकड़ी स्वयं झुकी हुई होती है। उसे कोई भी झुकाने का प्रयास नहीं करता है।
एतयोपमया धीरः सन्नमेत बलीयसे।
इन्द्राय स प्रणमते नमते यो बलीयसे ।।४.११.३।।
उपरोक्त्त कथन के अनुसार बुद्धिमान पुरुष को अपने से अधिक बलशाली के समक्ष झुक जाना चाहिये। जो मनुष्य ऐसा करता है , समझो वह देवराज इंद्र को नमस्कार करता है।
अथ या सुदुहा राजन्नैव तां वितुदन्त्यपि।।४.११.१।।
जो गाय कठिनाई से दुहने देती है अर्थात् जिससे दूध निकालना कठिन होता है , वह बहुत कष्ट पाती है। उसे दुहने के दूसरे रास्ते अपनाये जाते हैं। लेकिन जो आसानी से दूध देती है , उसे कोई भी कष्ट नहीं पहुँचाता है।
यदतप्तं प्रणमति न तत्सन्तापयन्त्यपि।
यच्च स्वयं नतं दारु न तत्सन्नमयन्त्यपि ।।४.११.२।।
जो धातु बिना आग में तपाये ही मुड़ जाती है , उसे कोई भी नहीं तपाता है। जो लकड़ी स्वयं झुकी हुई होती है। उसे कोई भी झुकाने का प्रयास नहीं करता है।
एतयोपमया धीरः सन्नमेत बलीयसे।
इन्द्राय स प्रणमते नमते यो बलीयसे ।।४.११.३।।
उपरोक्त्त कथन के अनुसार बुद्धिमान पुरुष को अपने से अधिक बलशाली के समक्ष झुक जाना चाहिये। जो मनुष्य ऐसा करता है , समझो वह देवराज इंद्र को नमस्कार करता है।
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