गुरुवार, 21 अप्रैल 2016

४.११ आप और बलवान

भूयांसं लभते क्लेशं या गौर्भवति दुर्दुहा।
अथ या सुदुहा राजन्नैव तां वितुदन्त्यपि।।४.११.१।।

जो गाय कठिनाई से दुहने देती है अर्थात् जिससे दूध निकालना कठिन होता है , वह बहुत कष्ट पाती है।  उसे दुहने के दूसरे रास्ते अपनाये जाते  हैं। लेकिन जो आसानी से दूध देती है , उसे कोई भी कष्ट नहीं पहुँचाता है।

यदतप्तं प्रणमति न तत्सन्तापयन्त्यपि।
यच्च स्वयं नतं दारु न तत्सन्नमयन्त्यपि ।।४.११.२।।

जो धातु बिना आग में तपाये ही मुड़ जाती है , उसे कोई भी नहीं तपाता है।  जो लकड़ी स्वयं झुकी हुई होती है।  उसे कोई भी झुकाने का प्रयास नहीं करता है।

एतयोपमया धीरः सन्नमेत बलीयसे।
इन्द्राय स प्रणमते नमते यो बलीयसे ।।४.११.३।।

उपरोक्त्त कथन के अनुसार बुद्धिमान पुरुष को अपने से अधिक बलशाली के समक्ष झुक जाना चाहिये।  जो मनुष्य ऐसा करता है , समझो वह देवराज इंद्र को नमस्कार करता है।

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