गुरुवार, 21 अप्रैल 2016

४.२० ऐश्र्वर्य

ऐश्र्वर्यमदपापिष्ठा मदाः पानमदादयः।
ऐश्र्वर्यमदमत्तो हि नापतित्वा विबुध्यते।।४.२०।। 

वैसे तो शराब पीने का नशा भी नशा ही है।  लेकिन ऐश्र्वर्य अर्थात् धन - सम्पत्ति का जो मद होता है , वह सबसे बुरा होता है ; क्योंकि ऐश्र्वर्य के नशे में चूर व्यक्त्ति का जब तक अहित नहीं होता तब तक वह होश में नहीं आता है।

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