गुरुवार, 21 अप्रैल 2016

४.१७ शील

जिता सभा वस्त्रवता मिष्टाशा गोमता जिता।
अध्वा जितो यानवता सर्वं शीलवता जीतम्।।४.१७.१।।

अच्छे वस्त्र धारण करने वाला अपने आकर्षण से सभा पर अपना प्रभुत्व स्थापित कर लेता है।  जिसके पास गाय होती  है , वह मीठे स्वाद को जीत लेता है। सवारी से आने - जाने वाला रास्ते को जीत लेता है लेकिन शीलगुण वाला व्यक्त्ति इन सब पर अपना प्रभुत्व जमा लेता है।

शीलं प्रधानं पुरुषे तद्यस्येह प्रणश्यति।
न तस्य जीवितेनार्थो न धनेन न बन्धुभिः ।।४.१७.२।।

मनुष्यों में शील गुण प्रधान है।  जिस व्यक्त्ति का यही गुण खत्म हो जाता है , तो उसका जीवन , लक्ष्मी और भाई - बन्धुओं से कोई प्रयोजन सिद्ध नहीं होता है। अर्थात् शीलरहित मनुष्य का अपने परिवार वालों से भी कोई कार्य नहीं बनता है।

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