गुरुवार, 21 अप्रैल 2016

४.९ मतलब की बात

अप्युन्मत्तात्प्रलपतो बालाच्च परिजल्पतः।
सर्वतः सारमादद्यादश्मभ्य इव काञ्चनम्।।४.९.१।।

निरर्थक बोलने वाले पागल और बच्चे की बात में यदि कोई मतलब की बात पता चले तो उसे उसी प्रकार ग्रहण करना चाहिये , जिस प्रकार पत्थरों में से सोना ग्रहण किया जाता है।

सुव्याहृतानि सूक्तानि सुकृतानि ततस्ततः।
सञ्चिन्वनधीर आसीत् शिलाहारी शीलं यथा ।।४.९.२।। 

जिस तरह खेत के कट जाने पर अन्न बीनने वाला एक-एक दाना चुन लेता है , उसी तरह मनुष्यों को अच्छी बातों , सूक्त्तियों तथा सत्कर्मों को संग्रह करना चाहिये।

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