यस्मात्त्रस्यन्ति भूतानि मृगव्याधान्मृगा इव।
सागरान्तामपि महीं लब्ध्वा स परिहीयते।।४.८.१।।
जिस तरह शिकारी से हिरन भयभीत रहता है , उसी तरह जिस राजा से उसकी प्रजा डरी हुई रहती है। वह समुद्र की भांति फैला हुआ राज्य पाकर भी प्रजाजनों द्वारा त्याग दिया जाता है।
पितृ पैतामहं राज्यं प्राप्तवान्स्वेन कर्मणा।
वायुरभ्रमिवासाद्य भ्रंशयत्यनये स्थितः ।।४.८.२।।
अन्याय से युक्त्त कार्यों को करने वाले राजा अपने बाप - दादाओं से प्राप्त राज्य को उसी प्रकार नष्ट कर देता है। जिस प्रकार हवा बादलों को उड़ाकर नष्ट कर देती है।
अथ सन्त्यजतो धर्ममधर्मं चानुतिष्ठतः।
प्रतिसंवेष्टते भूमिरग्नौ चर्माहित यथा ।।४.८.३।।
जो राजा धर्म का त्यागकर अधर्म का अनुस्ठान करता है , तो उसका राज्य उसी प्रकार नष्ट हो जाता है , जिस प्रकार आग में डाले हुए चमड़े का नाश हो जाता है।
य एव यत्नः क्रियते परराष्ट्रविमर्दने।
स एव यत्नः कर्तव्यः स्वराष्ट्रपरिपालने।।४.८.४।।
जो प्रयत्न राजा अपने शत्रु का विनाश करने के लिये करता है। उसे वही प्रयत्न अपने राज्य की रक्षा करने के लिये भी करना चाहिये।
सागरान्तामपि महीं लब्ध्वा स परिहीयते।।४.८.१।।
जिस तरह शिकारी से हिरन भयभीत रहता है , उसी तरह जिस राजा से उसकी प्रजा डरी हुई रहती है। वह समुद्र की भांति फैला हुआ राज्य पाकर भी प्रजाजनों द्वारा त्याग दिया जाता है।
पितृ पैतामहं राज्यं प्राप्तवान्स्वेन कर्मणा।
वायुरभ्रमिवासाद्य भ्रंशयत्यनये स्थितः ।।४.८.२।।
अन्याय से युक्त्त कार्यों को करने वाले राजा अपने बाप - दादाओं से प्राप्त राज्य को उसी प्रकार नष्ट कर देता है। जिस प्रकार हवा बादलों को उड़ाकर नष्ट कर देती है।
अथ सन्त्यजतो धर्ममधर्मं चानुतिष्ठतः।
प्रतिसंवेष्टते भूमिरग्नौ चर्माहित यथा ।।४.८.३।।
जो राजा धर्म का त्यागकर अधर्म का अनुस्ठान करता है , तो उसका राज्य उसी प्रकार नष्ट हो जाता है , जिस प्रकार आग में डाले हुए चमड़े का नाश हो जाता है।
य एव यत्नः क्रियते परराष्ट्रविमर्दने।
स एव यत्नः कर्तव्यः स्वराष्ट्रपरिपालने।।४.८.४।।
जो प्रयत्न राजा अपने शत्रु का विनाश करने के लिये करता है। उसे वही प्रयत्न अपने राज्य की रक्षा करने के लिये भी करना चाहिये।
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