भक्ष्योत्तमप्रतिच्छन्नं मत्स्यो बडिशमायसम्।
लोभभिपाती ग्रसते नानुबन्धमवेक्षते।।४.३.१।।
मछली अच्छी चारे से ढकी हुई लोहे की कांटी को लोभवश पकड़कर खा जाती है। उससे मिलने वाले परिणामों के बारे में नहीं सोचती है।
यक्ष्छक्यं ग्रसितुं ग्रस्यं ग्रस्तं परिणमेच्च यत्।
हितं च परिणामे यत्तदाद्यं भूमिमिच्छता ।।४.३.२।।
अतः अपनी उन्नति चाहने वाले पुरुषों को वही वस्तु ग्रहण करनी चाहिये जो उसके योग्य हो। जो उससे ग्रहण की जा सके , जो ग्रहण करने के बाद पच सके तथा पचने के बाद जो हितकारी भी हो।
लोभभिपाती ग्रसते नानुबन्धमवेक्षते।।४.३.१।।
मछली अच्छी चारे से ढकी हुई लोहे की कांटी को लोभवश पकड़कर खा जाती है। उससे मिलने वाले परिणामों के बारे में नहीं सोचती है।
यक्ष्छक्यं ग्रसितुं ग्रस्यं ग्रस्तं परिणमेच्च यत्।
हितं च परिणामे यत्तदाद्यं भूमिमिच्छता ।।४.३.२।।
अतः अपनी उन्नति चाहने वाले पुरुषों को वही वस्तु ग्रहण करनी चाहिये जो उसके योग्य हो। जो उससे ग्रहण की जा सके , जो ग्रहण करने के बाद पच सके तथा पचने के बाद जो हितकारी भी हो।
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