वनस्पतेरपक्वानि फलानि प्रचिनोति यः।
स नाप्नोति रसं तेभ्यो बीजं चास्य विनश्यति।।४.४.१।।
जो मनुष्य वृक्षों से कच्चे फलों को तोड़ लेता है , उसे उन फलों से वास्तविक रस तो मिलता नहीं , बल्कि उन वृक्षों का बीज अवश्य नष्ट हो जाता है।
यस्तु पक्वमुपादत्ते काले परिणतं फलम्।
फलाद्रसं स लभते बीजाच्चैव फलं पुनः ।।४.४.२।।
जो व्यक्त्ति पेड़ से फल को पकने के बाद तोड़ता है , उसे उस फल का वास्तविक रस भी प्राप्त होता है और बीज से पुनः फल की प्राप्ति भी करता है।
स नाप्नोति रसं तेभ्यो बीजं चास्य विनश्यति।।४.४.१।।
जो मनुष्य वृक्षों से कच्चे फलों को तोड़ लेता है , उसे उन फलों से वास्तविक रस तो मिलता नहीं , बल्कि उन वृक्षों का बीज अवश्य नष्ट हो जाता है।
यस्तु पक्वमुपादत्ते काले परिणतं फलम्।
फलाद्रसं स लभते बीजाच्चैव फलं पुनः ।।४.४.२।।
जो व्यक्त्ति पेड़ से फल को पकने के बाद तोड़ता है , उसे उस फल का वास्तविक रस भी प्राप्त होता है और बीज से पुनः फल की प्राप्ति भी करता है।
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