गुरुवार, 21 अप्रैल 2016

४.१२ सदाचार

न कुलं वृत्तहीनस्य प्रमाणामिति मे मतिः।
अन्तेष्वपि हि जातानां वृत्तमेव विशिष्यते।।४.१२।।

मेरा विचार ऐसा है कि सदाचारहीन मनुष्य का उच्च कुल का होने पर भी मान्य नहीं होता ; क्योंकि नीच कुल में उत्पन्न मनुष्यों का भी सदाचार श्रेष्ठ माना जाता है।  कहने का तात्पर्य यह है कि जो मनुष्य आचाररहित हैं लेकिन उसका जन्म ऊँचे कुल में हुआ है तब भी वह सम्मानित नहीं होता तथा जो मनुष्य सदाचारी हैं , उनका जन्म यदि नीच कुल में भी हुआ तब भी वह सम्मानित किया जाता है।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें