आढ्यानां मांसपरमं मध्यानां गोरसोत्तरम्।
तैलोत्तरं दरिद्राणां भोजनं भरतर्षभ्।।४.१८.१।।
हे भारत श्रेष्ठ ! धनवान लोग का जो भोजन होता है उसमें मांस की अधिकता होती है। मध्यम वर्ग के लोगों के भोजन में गोरस यानि दूध , दही आदि की मात्रा अधिक होती है तथा निम्न वर्ग अर्थात् निर्धन लोगों के भोजन में तेल की अधिकता होती है अर्थात् उनका भोजन अत्यधिक तेल द्वारा बना होता है।
सम्पन्नतरमेवान्नं दरिद्रा भुञ्जते सदा।
क्षुत्स्वादुतां जनयति या चाढ्येषु सुदुर्लभा।।४.१८.२।।
निर्धन लोग हमेशा स्वादिष्ट भोजन खाते हैं ; क्योंकि उनकी भूख भोजन के स्वाद को बढ़ा देती है। धनवानों के भोजन में उस स्वाद का अभाव होता है। अर्थात् भूख रहने पर भोजन जैसा भी खाया जाएगा , वह स्वादिष्ट ही लगेगा। भूख न रहने पर अच्छा भोजन भी बिना स्वाद वाला होता है।
प्रायेण श्रीमतां लोके भोक्तुं शक्तिर्न विद्यते।
जीर्यत्यपि हि काष्ठानि दरिद्राणां महीपते।।४.१८.३।।
संसार में धनवान लोगों को भोजन करने की शक्त्ति नहीं होती , लेकिन निर्धन लोग पेट भरने के लिये काठ अर्थात् लकड़ी भी पचा जाते हैं। तात्पर्य यह है कि गरीब भूख मिटाने के लिये रूखा -सूखा भी खा लेता है।
तैलोत्तरं दरिद्राणां भोजनं भरतर्षभ्।।४.१८.१।।
हे भारत श्रेष्ठ ! धनवान लोग का जो भोजन होता है उसमें मांस की अधिकता होती है। मध्यम वर्ग के लोगों के भोजन में गोरस यानि दूध , दही आदि की मात्रा अधिक होती है तथा निम्न वर्ग अर्थात् निर्धन लोगों के भोजन में तेल की अधिकता होती है अर्थात् उनका भोजन अत्यधिक तेल द्वारा बना होता है।
सम्पन्नतरमेवान्नं दरिद्रा भुञ्जते सदा।
क्षुत्स्वादुतां जनयति या चाढ्येषु सुदुर्लभा।।४.१८.२।।
निर्धन लोग हमेशा स्वादिष्ट भोजन खाते हैं ; क्योंकि उनकी भूख भोजन के स्वाद को बढ़ा देती है। धनवानों के भोजन में उस स्वाद का अभाव होता है। अर्थात् भूख रहने पर भोजन जैसा भी खाया जाएगा , वह स्वादिष्ट ही लगेगा। भूख न रहने पर अच्छा भोजन भी बिना स्वाद वाला होता है।
प्रायेण श्रीमतां लोके भोक्तुं शक्तिर्न विद्यते।
जीर्यत्यपि हि काष्ठानि दरिद्राणां महीपते।।४.१८.३।।
संसार में धनवान लोगों को भोजन करने की शक्त्ति नहीं होती , लेकिन निर्धन लोग पेट भरने के लिये काठ अर्थात् लकड़ी भी पचा जाते हैं। तात्पर्य यह है कि गरीब भूख मिटाने के लिये रूखा -सूखा भी खा लेता है।
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